मुश्किलों में पुरे गांव के काम आया था रताणी (मेघवाल) राणावत परिवार मूली

मुश्किलों में पुरे गांव के काम आया था रताणी (मेघवाल) राणावत परिवार मूली जब जब आपदाएं आई मनुष्य की ही अपनी खामियां सामने आई है,अपने वास्तविक जीवन को भूलकर इंसान अपनी प्रकृति को भूल रहा है,वो भूल उन्हें पछतावा ही नही बल्कि बड़े खामियाजे में भुगतनी पड़ती है।। (उक्त पंक्तियाँ नरेन्द्र राणावत युवा साहित्यकार मूली चितलवाना द्वारा लिखित है।।) चितलवाना। इतिहास तथा पौराणिक कथाओं की बोध से जब हम किसी विशेष या अनूठे संयम का पाठक बनते हैं,तो एक विषय का आभास प्रकट करते हैं कि किसी चीज को लेकर उसकी उत्पत्ति कैसे हुई? उस विकट परिस्थिति में सहयोग एक विशेष का रहता है,जिस विशेष की वजह से वह आज चरम सीमा पार करता है। मतलब यह है कि आज उसका उद्भव और प्रभाव हमें अनेक रूपों में देखने को मिलता है। ▪ इसी तरह चितलवाना की मूली ग्राम के उद्भव की बात कुछ इस तरह है- बात 1899 के छप्पनिया काल की है जब गांव ही नही पुरे मारवाड़ में विकट हालात पैदा हो चुके थे। इंसान त्राहि-त्राहि कर रहा था। खाने पीने के लाले पड़ने लगे थे। लोग अपन...